Indian Railway Tiolet: भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े और सबसे व्यस्त रेल नेटवर्कों में से एक है. आधुनिकीकरण, यात्रियों की सुविधाएं, स्वच्छता, और टिकट समाधान जैसे क्षेत्रों में रेलवे ने पिछले वर्षों में अद्भुत प्रगति की है. प्लेटफॉर्म से लेकर ट्रेनों तक, लगभग हर जगह यात्री सुविधाओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. लेकिन इन्हीं प्रगतियों के बीच एक समस्या आज भी चर्चा में रहती है—ट्रेन के इंजन में टॉयलेट न होना. यानी वह जगह जहाँ देश की सबसे लंबी और भारी ट्रेनों को चलाने वाले लोको पायलट लगातार कई घंटों तक ड्यूटी करते हैं, वहां शौचालय की सुविधा नहीं होती. यह सवाल उठता है: आखिर इंजन में टॉयलेट क्यों नहीं होता? और लोको पायलट ऐसी स्थिति में कैसे मैनेज करते हैं?
ट्रेन में दो इंजन क्यों लगाए जाते हैं? (डबल इंजन का वास्तविक कारण)
कई लोग यह समझते हैं कि ट्रेन में दो इंजन लगाना सिर्फ अतिरिक्त ताकत के लिए है—यह बात आंशिक रूप से सही है. रेलवे तकनीकी भाषा में दो इंजन वाली ट्रेन को मल्टीपल यूनिट ऑपरेशन कहा जाता है.
डबल इंजन का उपयोग इन परिस्थितियों में किया जाता है:
- जब ट्रेन का वजन ज्यादा होता है
- जब ट्रेन को ढलानों या पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरना होता है
- जब जरूरत होती है तेज स्पीड और बेहतर नियंत्रण की
- खासकर मालगाड़ियों, कोयला, तेल, सीमेंट और कंटेनर वाली ट्रेनों में
यात्री ट्रेनों में भी कभी-कभी डबल इंजन लगाया जाता है. सबसे बड़ी बात—दोनों इंजनों का नियंत्रण एक ही लोको पायलट के पास होता है
इंजन में टॉयलेट क्यों नहीं होता? (सबसे बड़ी तकनीकी वजहें)
रेलवे इंजनों का डिज़ाइन सिर्फ तकनीकी संचालन, सुरक्षा, और इलेक्ट्रिक/मैकेनिकल कंट्रोल्स के इर्द-गिर्द बना होता है.
इंजन में टॉयलेट न होने के प्रमुख कारण हैं:
1. जगह की भारी कमी
ट्रेन इंजन में बहुत सीमित जगह होती है क्योंकि:
- वह जगह मशीनरी और कंट्रोल सिस्टम से भरी होती है
- इंजन का हर हिस्सा तकनीकी उपकरणों के लिए जरूरी होता है
2. सुरक्षा कारण
इंजन के अंदर एक गलत प्लंबिंग सिस्टम, पानी का रिसाव, या टॉयलेट की गड़बड़ी:
- बिजली की सप्लाई को प्रभावित कर सकती है
- इंजन को नुकसान पहुंचा सकती है
- ड्राइवर की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है
3. संरचना और डिज़ाइन की बाधाएँ
इंजन को विशेष बल, गति और नियंत्रण के लिए बनाया जाता है.
टॉयलेट जोड़कर उस संरचना में बदलाव करना:
- लागत बढ़ाता
- सुरक्षा कम करता
- संचालन में बाधा डाल सकता है
यही वजह है कि आज भी भारतीय रेलवे के अधिकांश इंजनों में टॉयलेट नहीं होते.
लोको पायलट टॉयलेट की समस्या कैसे संभालते हैं? (असली स्थिति)
भारतीय रेलवे हजारों किलोमीटर लंबा नेटवर्क है. और लंबी दूरी की ट्रेनों में लोको पायलट अक्सर 5–6 घंटे तक लगातार इंजन में रहते हैं.
तो वे टॉयलेट कैसे जाते हैं?
1. अगले स्टेशन पर जाकर उपयोग करना
स्टेशन पर रुकने पर लोको पायलट को कुछ मिनट मिलते हैं.
स्टेशन पर ड्राइवरों के लिए विशेष शौचालय बने होते हैं.
2. पोर्टेबल या वाटर-लेस टॉयलेट
भारतीय रेलवे ने कुछ इंजनों में पोर्टेबल टॉयलेट लगाने की शुरुआत की है.
यह प्रयोगात्मक चरण में है लेकिन भविष्य में यह बड़ी राहत बन सकता है.
3. SLR कोच का उपयोग (लेकिन मुश्किल)
इंजन के पीछे लगे SLR कोच (स्टाफ लगेज रेक) में स्टाफ के लिए टॉयलेट होता है,
लेकिन:
- वहां तक तेजी से पहुंचना मुश्किल
- पटरियों पर चलना जोखिम भरा
- समय सीमित
इसलिए इसे बहुत कम ही उपयोग किया जाता है.
4. अतीत में झाड़ियों का सहारा (यूनियन ने इसे अमानवीय बताया)
कई बार रेलवे यूनियनों ने कहा है कि जब ट्रेन लंबे सिग्नल पर रुकती है,
तो कुछ लोको पायलट झाड़ियों या ट्रैक किनारे का उपयोग करते थे—
इसे “अमानवीय” बताते हुए यूनियनों ने वर्षों तक विरोध किया.
रेलवे इस स्थिति को खत्म करने के लिए अब समाधान ढूंढ रहा है.
क्या हर बार ट्रेन रोकी जा सकती है? (सिग्नल की अनुमति जरूरी)
यदि चालक को टॉयलेट जाना पड़े तो ट्रेन को मनमर्जी से नहीं रोका जा सकता.
- इसके लिए सिग्नल विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है
- बिना अनुमति ट्रेन रोकना सेफ्टी नियमों का उल्लंघन है
- ऐसा करने से पूरे सेक्शन का ट्रैफिक प्रभावित हो सकता है
इसलिए लोको पायलट हमेशा एक प्लान बनाकर चलते हैं.
रेलवे की नई पहल: आखिर समाधान क्या है?
भारतीय रेलवे ने समस्या को गंभीरता से लेकर कुछ उपाय शुरू किए हैं:
- नए इंजनों में पोर्टेबल/वाटरलेस टॉयलेट लगाने की योजना
- लोको पायलटों के आराम के लिए बेहतर स्टेशन सुविधाएँ
- इंजन को टॉयलेट-फ्रेंडली बनाने के लिए रिसर्च
- पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कुछ लोकोमोटिव में कैब बदलना
भविष्य में यह समस्या काफी हद तक खत्म हो सकती है.






